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Parle G Success Story: छोटे से बाड़े से अरबों का ब्रांड, हर घर की पहचान बना पारले जी

भारत में अगर किसी बिस्किट ने पीढ़ियों को जोड़ने का काम किया है, तो वह है पारले जी। उत्तर से दक्षिण और गांव से शहर तक, चाय के साथ सबसे पहला नाम आज भी पारले जी का ही आता है। एक समय छोटे से बाड़े में शुरू हुआ यह देसी ब्रांड आज भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अपनी मजबूत पहचान बना चुका है। पारले जी आज देश के सबसे बड़े FMCG ब्रांड्स में गिना जाता है।

छोटे से बाड़े में शुरू हुआ बड़ा सपना
पारले जी की कहानी की शुरुआत साल 1928 में हुई थी, जब भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था और बाजार पर विदेशी कंपनियों का दबदबा था। ऐसे समय में मोहनलाल चौहान ने स्वदेशी बिस्किट बनाने का साहसिक फैसला लिया। उन्होंने एक पशुओं के बाड़े में कन्फेक्शनरी का काम शुरू किया। करीब 60 हजार रुपये की पूंजी लगाकर जर्मनी से बिस्किट बनाने की मशीनें मंगवाई गईं और मुंबई में एक छोटी फैक्ट्री की नींव रखी गई। अपने पांच बेटों के साथ मिलकर उन्होंने ‘पारले’ ब्रांड की शुरुआत की।

हर घर की पहचान बना पारले जी
साल 1939 में बाजार में उतरा पारले जी ग्लूकोज बिस्किट देखते ही देखते बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक का पसंदीदा बन गया। किफायती कीमत, अच्छा स्वाद और भरोसेमंद गुणवत्ता ने इसे आम आदमी का बिस्किट बना दिया। समय के साथ कंपनी ने पैकेजिंग और मार्केटिंग में बदलाव जरूर किए, लेकिन पारले जी ने अपनी सादगी और भरोसे को कभी नहीं छोड़ा। यही वजह है कि दशकों तक यह भारत का सबसे ज्यादा बिकने वाला बिस्किट बना रहा।

अब चौथी पीढ़ी के हाथ में कारोबार
आज पारले प्रोडक्ट्स का कारोबार भारत समेत करीब 8 देशों में फैला हुआ है। इस पारिवारिक बिजनेस की कमान अब चौथी पीढ़ी के हाथों में है। फोर्ब्स के मुताबिक, विजय चौहान और उनके परिवार की कुल संपत्ति लगभग 8.6 बिलियन डॉलर यानी करीब 78 हजार करोड़ रुपये आंकी गई है।

एक छोटे से बाड़े से शुरू होकर अरबों की कंपनी बनने तक का सफर पारले जी को सिर्फ एक बिस्किट नहीं, बल्कि मेहनत, स्वदेशी सोच और भरोसे की मिसाल बनाता है। यही कारण है कि पारले जी आज भी हर भारतीय के दिल में खास जगह रखता है।

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