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रुबैया सईद अपहरण केस: 35 साल पुराने ज़ख्म में नई हलचल, CBI ने एक और आरोपी को किया गिरफ्तार


कश्मीर की हालिया ठंडी हवा में अचानक पुरानी कर्राहट लौट आई है। 1989 में कश्मीर में आतंकवाद की जड़ों को हवा देने वाली रुबैया सईद किडनैपिंग केस में CBI ने सोमवार को एक और आरोपी—शफात अहमद शांगलू—को गिरफ्तार किया है। यह नाम शायद इतिहास की मोटी किताबों में दर्ज न हो, लेकिन उसकी गिरफ्तारी उस दौर के अंधेरे गलियारों में दोबारा कदमों की आहट जैसी है।

शफात, श्रीनगर का निवासी, जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) से जुड़ा बताया जा रहा है। इसी संगठन के प्रमुख यासीन मलिक इस मामले में मुख्य आरोपी हैं। मलिक पर 60 से अधिक मुकदमे दर्ज हैं—जिनमें भारतीय वायुसेना के जवानों की हत्या से लेकर देशविरोधी गतिविधियों तक के आरोप शामिल हैं। वह इस समय दिल्ली की तिहाड़ जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है।

1989 का वह दिसंबर जिसने कश्मीर की दिशा बदल दी

8 दिसंबर 1989, दोपहर लगभग 3:45 बजे। श्रीनगर की सड़कों पर धूप ढल रही थी। उसी समय, लाल डेड मेमोरियल अस्पताल से इंटर्नशिप खत्म कर घर लौट रहीं रुबैया सईद, तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी, अचानक आतंकवादियों के निशाने पर आ गईं। कार रुकी, हथियार चमके, और एक पल में कश्मीर की सियासत हमेशा के लिए बदल गई।

उस समय कश्मीर में आतंकवाद अभी शुरुआती अवस्था में था—लेकिन इस अपहरण ने उसे बेहिचक और बेखौफ बना दिया। 2022 में अदालत में पेश होकर रुबैया ने खुद बताया था कि यासीन मलिक ही वह व्यक्ति था जिसने उसे धमकाया था।

महज पांच दिनों में रिहाई—और पांच आतंकियों की रिहाई

सरकार दबाव में थी। आतंकियों की मांग भारी थी। और फिर पाँच दिन बाद—13 दिसंबर 1989—रुबैया को छोड़ दिया गया। बदले में केंद्र सरकार ने पाँच आतंकियों—अब्दुल हमीद शेख, शेर खान, नूर मोहम्मद कलवाल, अल्ताफ अहमद और जावेद अहमद जरगर—को रिहा कर दिया।

उस रिहाई ने घाटी में ऐसा तूफ़ान उठाया जिसे उस समय के पत्रकार आज भी याद करते हैं। सड़कें भर गईं, भीड़ उमड़ी, और हवा में “आजादी” के नारे गूंजने लगे। उस वक्त राज्य की फारूक अब्दुल्ला सरकार लगभग नदारद दिखी। प्रशासन भय में सिमटता रहा और घाटी जश्न में डूबी रही।

पत्रकार हरिंदर बावेजा ने लिखा था कि यह घटना “तराजू को पूरी तरह आतंकवादियों के पक्ष में झुका देने वाला निर्णायक मोड़” साबित हुई। वहीं वरिष्ठ पत्रकार आशा खोसा ने स्पष्ट कहा—“कश्मीर की जनता पूरी तरह आतंकियों के साथ थी।”

उनके अनुसार, रुबैया के लिए कोई सहानुभूति नहीं थी; लोग आतंकवाद को एक रोमांच की तरह देखते थे—“मेरा चचेरा भाई आतंकवादी बन गया है, अब उसके पास बंदूक भी है”—यह उस दौर का आम वाक्य था।

आज की गिरफ्तारी—पुरानी परछाइयों की वापसी

शफात अहमद की गिरफ्तारी से इस केस में नई कानूनी हलचल लौट आई है। CBI पहले ही इस मामले में गवाही, पुराने सबूत और वर्षों की सियासी परतें खोल रही है। मलिक के खिलाफ अदालत में सुनवाई तेजी से बढ़ रही है।

इस गिरफ्तारी का मतलब सिर्फ एक नाम जोड़ना नहीं है—यह उस दौर की गांठों को खोलना है, जब अपहरण के जश्न से कश्मीर की किस्मत एक झटके में पलट गई थी।

इतिहास के पहाड़ों पर जमा बर्फ कभी-कभी अचानक पिघलती है—और घाटी को फिर से अपनी कहानी याद दिलाती है। आज की गिरफ्तारी भी कुछ वैसी ही है।

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