पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार को कड़ा संदेश देते हुए पंचायत और निकाय चुनाव तय समय सीमा में कराने के स्पष्ट और बाध्यकारी निर्देश जारी किए हैं। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय प्रकाश शर्मा की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए सरकार की देरी पर कड़ी नाराजगी जताई और कहा कि चुनाव कराने की समयबद्ध प्रक्रिया राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी है, इसे किसी भी स्थिति में टाला नहीं जा सकता।
अदालत ने अपने आदेश में दो महत्वपूर्ण समयसीमाएँ तय की हैं—
🔹 31 दिसंबर 2025 तक परिसीमन प्रक्रिया हर हाल में पूरी होनी चाहिए।
🔹 15 अप्रैल 2026 तक पंचायत और निकाय चुनाव कराना अनिवार्य होगा।
हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार लगातार चुनाव प्रक्रिया में देरी कर रही है, जिसका सीधा असर स्थानीय निकायों के लोकतांत्रिक ढांचे पर पड़ता है। अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि “समय पर चुनाव” संविधान का मूल सिद्धांत है और राज्य सरकार इस जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। कोर्ट ने यह भी कहा कि चुनाव प्रक्रिया में अनावश्यक देरी जनता के अधिकारों का उल्लंघन है।
इस आदेश के बाद पूरे बिहार में पंचायत और नगर निकाय चुनाव को लेकर हलचल तेज होने की संभावना है। लंबे समय से रुकी हुई परिसीमन प्रक्रिया को अब सरकार को तेजी से निपटाना होगा ताकि तय तिथि तक चुनाव कराने में कोई बाधा न आए।
राजनीतिक हलकों में इस फैसले को ऐतिहासिक माना जा रहा है, क्योंकि इससे चुनावी शेड्यूल को कानूनी सुरक्षा मिली है। विपक्ष ने भी अदालत के आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि इससे सरकार की लापरवाही सामने आई है और अब मतदाताओं को समय पर चुनाव का अधिकार मिल सकेगा।
हाईकोर्ट के इस निर्देश के बाद अब सरकार पर दबाव बढ़ गया है कि वह परिसीमन, मतदाता सूची और चुनावी तैयारियों को मिशन मोड में पूरा करे, ताकि अप्रैल 2026 से पहले पूरे बिहार में पंचायत और निकाय चुनाव संपन्न हो सकें।
