पटना। चुनाव आयोग की ओर से जारी नई वोटर लिस्ट ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। आंकड़े बताते हैं कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं के नाम बड़ी संख्या में मतदाता सूची से हटाए गए हैं। यह स्थिति मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए चिंता का विषय बन गई है, क्योंकि पिछले एक दशक से महिला वोटर उनकी सबसे मजबूत ताकत और निर्णायक वोट बैंक रही हैं।
महिलाओं का वोट बैंक बना टेंशन
नीतीश कुमार के शासनकाल में महिला मतदाता एक नई शक्ति बनकर उभरी हैं। 2015 से लेकर 2024 तक हर चुनाव में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से अधिक रही है। यही वजह है कि बिहार की राजनीति में महिला मतदाताओं को ‘निर्णायक जाति’ की तरह देखा जाने लगा है। लेकिन अब बड़ी संख्या में महिला नाम हटने से इस वोट बैंक पर असर पड़ सकता है।
वोटर लिस्ट में कटौती
1 अगस्त को 65 लाख नाम हटे।
30 सितंबर को 3.66 लाख नाम और हटे।
नाम हटने के प्रमुख कारण
62,000 नाम मृत्यु के कारण।
1.64 लाख नाम पता बदलने के कारण।
81,000 नाम डुप्लीकेट प्रविष्टियों के कारण।
48,000 नाम लापता होने के कारण।
100 मामले कम उम्र के आवेदकों के।
महिला मतदाताओं में सबसे बड़ी कटौती इन जिलों में
पूर्णिया : 76,000 महिला वोटर कम, 40,000 पुरुष कम।
सुपौल : 40,000 महिला वोटर कम, 11,000 पुरुष कम।
सीवान : 78,000 महिला वोटर कम, 28,000 पुरुष कम।
पटना : 50,000 महिला वोटर कम, 36,000 पुरुष कम।
नीतीश का सबसे बड़ा सहारा – महिला वोटर
बिहार में महिला मतदाताओं का सामाजिक समीकरण भी नीतीश कुमार के पक्ष में माना जाता है। आंकड़े बताते हैं कि राज्य में 2.99% कुर्मी, 14.46% यादव, 0.6% कायस्थ, 19.6% अनुसूचित जाति, 17.8% मुस्लिम, 3.7% ब्राह्मण, 3.4% राजपूत और 2.9% भूमिहार महिला मतदाता हैं। इन वर्गों की महिलाएं बड़ी संख्या में जेडीयू के पक्ष में वोट करती रही हैं।
नीतीश कुमार ने हाल ही में महिला मतदाताओं को साधने के लिए कई घोषणाएं भी की हैं—जीविका दीदी, आशा वर्कर, आंगनबाड़ी सेविका और महिला शिक्षकों से जुड़ी मांगों को पूरा कर उन्होंने इस वर्ग को अपने पक्ष में बनाए रखने की कोशिश की है।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा
वोटर लिस्ट से महिलाओं के नाम हटने की वजह चाहे मायके और ससुराल दोनों जगह पंजीकरण हो या डुप्लीकेट नाम, लेकिन इसका असर चुनावी समीकरण पर पड़ना तय है। राजनीतिक गलियारों में इस बात पर जोरदार चर्चा है कि क्या नीतीश कुमार का यह मजबूत वोट बैंक इस बार कमजोर पड़ेगा या फिर वे महिला सशक्तिकरण के एजेंडे से इसे संभाल लेंगे।
👉 कुल मिलाकर, बिहार का आगामी चुनाव महिला वोटरों की भूमिका पर ही टिका दिख रहा है।