अरवल। जिले को रेलवे लाइन से जोड़ने की वर्षों पुरानी मांग को लेकर एक बार फिर आंदोलन की गूंज तेज हो गई है। "रेल के लिए जेल" नारे के साथ आंदोलनकारी लगातार संघर्ष कर रहे हैं। संघर्ष के प्रतीक माने जाने वाले मनोज सिंह यादव की रिहाई की मांग अब जनआंदोलन का रूप लेती जा रही है।
आंदोलनकारियों का कहना है कि 45 वर्षों पहले 1980 में लोकसभा और राज्यसभा में अरवल को रेल लाइन से जोड़ने का प्रस्ताव पारित हुआ था। इसके बाद 16 अक्टूबर 2007 को तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने इस रेल परियोजना का शिलान्यास भी किया था। बावजूद इसके आज तक अरवल जिले को रेल सुविधा नहीं मिल सकी।
रेल लाइन संघर्ष समिति का आरोप है कि सरकार और प्रशासन की लापरवाही के कारण अरवल और औरंगाबाद के लाखों लोगों को अब तक रेल सुविधा से वंचित रहना पड़ा है। समिति ने स्पष्ट किया है कि यदि 2025 तक रेल परियोजना पर ठोस पहल नहीं की गई तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा।
नेताओं ने कहा कि लगातार 12 वर्षों से इस आंदोलन को चलाया जा रहा है और जनता की भागीदारी दिन-ब-दिन बढ़ रही है। उनका कहना है कि यह केवल अरवल ही नहीं, बल्कि पटना, जहानाबाद, औरंगाबाद, अरवल, काको, कुढ़नी, और आस-पास के जिलों की जनता के विकास और सुविधा से जुड़ा हुआ मुद्दा है।
रेल संघर्ष समिति ने केंद्र और राज्य सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि आंदोलनकारियों पर दमन की नीति अपनाई गई तो व्यापक जनआंदोलन खड़ा होगा। उन्होंने कहा कि "रेल का फाटक टूटेगा, मनोज यादव छूटेगा" के नारों के साथ यह आंदोलन अब निर्णायक दौर में प्रवेश कर चुका है।
सह संयोजक: धनंजय यादव, विजय कुमार बिहारी, रोहन बाबू, जय प्रकाश सिंह, विंदेश्वरी प्रसाद सिंह, रामेश्वर चौधरी, रजनीश कुमार, रविन्द्र कन्नौजिया, विकास भोजपुरिया।
रिपोर्ट सतवीर सिंह