नई दिल्ली। संसद के बजट सत्र में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के तेवर इस बार काफी आक्रामक रहे। केंद्र सरकार की नीतियों और पीएम नरेंद्र मोदी पर लगातार निशाना साधते हुए उन्होंने अडानी मुद्दे को भी उठाया, लेकिन अन्य विपक्षी दलों में इसको लेकर खास उत्साह नहीं दिखा। हालांकि, पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के दौरान तृणमूल कांग्रेस ने शुरुआती विरोध दर्ज कराया और वोटर लिस्ट रिवीजन पर आश्वासन की मांग की। यही मुद्दा अब विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने का कारण बन रहा है।
पिछले साल के लोकसभा चुनाव के बाद विपक्ष में एकजुटता की कमी साफ दिख रही थी। बीजेपी विरोध की रणनीति चुनाव तक तो साथ रही, लेकिन बाद में कोई साझा मुद्दा न होने से अलगाव बढ़ गया। कांग्रेस आर्थिक नीतियों पर हमलावर रही, तो समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी अपने-अपने क्षेत्रीय मुद्दों में व्यस्त हो गईं। इसी बीच, वोटर लिस्ट रिवीजन ऐसा विषय बनकर उभरा है, जो हर दल के लिए अस्तित्व का सवाल है, खासकर उन वोटरों के नाम हटने के अंदेशे के कारण, जिन्हें विपक्ष का वोट बैंक माना जाता है।
इसी रणनीति के तहत राहुल गांधी ने गुरुवार शाम INDIA ब्लॉक के नेताओं के लिए डिनर पार्टी का आयोजन किया। इसमें तृणमूल कांग्रेस समेत वे दल भी शामिल होंगे, जो हाल ही में कांग्रेस से दूरी बना चुके थे। यहां तक कि गठबंधन से अलग होने का ऐलान कर चुकी आम आदमी पार्टी भी इस मुद्दे पर कांग्रेस के साथ खड़ी हो गई है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस एकजुटता का पहला इम्तिहान उपराष्ट्रपति चुनाव में हो सकता है। अगर विपक्ष साझा उम्मीदवार उतारने में सफल हुआ तो यह संकेत होगा कि रिश्तों की बर्फ पिघल रही है। हालांकि, फिलहाल बीजेपी और एनडीए के लिए कोई बड़ा खतरा नजर नहीं आता, क्योंकि उपराष्ट्रपति चुनाव में उनकी जीत लगभग तय है। लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे और वोटर लिस्ट रिवीजन पर विपक्ष की एकता भविष्य की राजनीति का समीकरण बदल सकते हैं।