भारत में IVF इलाज बना भारी आर्थिक बोझ, 90% जोड़े कर्ज में डूबे — ICMR अध्ययन में चौंकाने वाले खुलासे, PM-JAY में शामिल करने की सिफारिश
नई दिल्ली। संतान की चाहत हर दंपत्ति की होती है, लेकिन यही चाहत मध्यम वर्गीय परिवारों को आर्थिक संकट में धकेल रही है। भारत में बढ़ती इनफर्टिलिटी (बांझपन) और IVF (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) उपचार की ऊंची लागत परिवारों पर गहरा वित्तीय बोझ डाल रही है। यह खुलासा एक नए मल्टी-सेंटर अध्ययन में हुआ है, जिसे ICMR-NIRRCH के HTA रिसोर्स हब द्वारा डॉ. बीना जोशी के नेतृत्व में किया गया है।
अध्ययन में पाया गया कि IVF करवा रहे लगभग 90% जोड़े आर्थिक रूप से जूझ रहे हैं और भारी खर्च के कारण कर्ज लेने को मजबूर हो रहे हैं। भारत में लगभग 3.9% से 16.8% दंपत्ति बांझपन से प्रभावित हैं, लेकिन IVF की लागत उन्हें जीवनभर के कर्ज में डाल रही है।
सरकारी और निजी अस्पतालों में IVF की लागत
अध्ययन के अनुसार,
- सार्वजनिक अस्पतालों में प्रति IVF चक्र औसत खर्च: 1.1 लाख रुपये
- निजी अस्पतालों में प्रति चक्र खर्च: 2.30 लाख रुपये
इतना भारी खर्च आधे से अधिक जोड़ों को पैसे उधार लेने के लिए मजबूर कर रहा है। हैरानी की बात यह है कि केवल 5% दंपत्तियों के पास बीमा कवरेज था, वह भी सीमित लाभ के साथ।
अध्ययन की प्रमुख सिफारिशें
शोध में एक IVF चक्र की हेल्थ- सिस्टम लागत 81,332 रुपये आंकी गई है। इस आधार पर सुझाव दिया गया है कि अगर प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY) में IVF शामिल किया जाता है तो 81,332 रुपये की राशि को पुनर्भुगतान पैकेज के रूप में लिया जा सकता है।
हालांकि शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि IVF खर्च का बड़ा हिस्सा OPD सेवाओं पर आता है, जबकि PM-JAY में वर्तमान में OPD लागत शामिल नहीं है। इसलिए IVF को प्रभावी रूप से शामिल करने के लिए PM-JAY की संरचना में बड़े बदलाव की आवश्यकता होगी।
NICE और CGHS दिशानिर्देशों के अनुरूप, अध्ययन में तीन IVF चक्रों तक के पुनर्भुगतान पर विचार करने की भी सिफारिश की गई है।
यह रिपोर्ट भारत में प्रजनन स्वास्थ्य पर नई बहस छेड़ती है और बताती है कि IVF उपचार को किफायती बनाने के लिए नीतिगत सुधार बेहद जरूरी हो गए हैं।