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लोकसभा में पीएम मोदी का वंदे मातरम् पर संबोधन: 150 वर्ष पूरे होने पर इतिहास, राजनीति और राष्ट्रीय भावना पर तीखी टिप्पणियाँ


नई दिल्ली। सोमवार को लोकसभा में वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर विशेष चर्चा की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। लगभग एक घंटे लंबे संबोधन में पीएम मोदी ने इस गीत की ऐतिहासिक विरासत, स्वतंत्रता संग्राम में इसकी भूमिका और आजादी के बाद इससे जुड़े राजनीतिक उतार-चढ़ावों पर विस्तृत चर्चा की। अपने संबोधन में उन्होंने ‘वंदे मातरम्’ का उल्लेख 121 बार किया, जो इस मुद्दे के प्रति उनके भावनात्मक और वैचारिक जुड़ाव को दर्शाता है।

पीएम मोदी ने कहा कि वंदे मातरम् अंग्रेजों के खिलाफ करारा जवाब था और आज भी देशवासियों को प्रेरणा देता है। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी स्वयं इस गीत को इतना शक्तिशाली मानते थे कि उन्हें यह राष्ट्रीय गीत के रूप में उपयुक्त लगता था। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर किन कारणों से दशकों तक वंदे मातरम् के साथ ‘‘अन्याय’’ हुआ और किन ताकतों ने बापू की इच्छा को दबा दिया।

मोदी ने अपने भाषण में बंकिम चंद्र चटर्जी को 10 बार याद करते हुए कहा कि उनका लिखा यह गीत राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक है। उन्होंने 1906 के ऐतिहासिक बारीसाल जुलूस का भी उल्लेख किया, जिसमें 10 हजार से अधिक लोग, हिंदू-मुस्लिम मिलकर वंदे मातरम् के झंडों के साथ सड़क पर उतरे थे। उन्होंने कहा कि बंगाल में यह नारा गली-गली में गूंजता था और स्वतंत्रता सेनानियों की अंतिम सांस तक प्रेरणा का स्रोत था।

पीएम मोदी ने अपने संबोधन का एक बड़ा हिस्सा जवाहरलाल नेहरू और मुस्लिम लीग के विवाद पर केंद्रित किया। उन्होंने कहा कि 1936 में मोहम्मद अली जिन्ना ने वंदे मातरम् के खिलाफ अभियान चलाया था और कांग्रेस नेतृत्व ने इसका कड़ा जवाब देने के बजाय स्वयं गीत की समीक्षा शुरू कर दी। प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया कि नेहरू ने मुस्लिम लीग के दबाव में आकर वंदे मातरम् के उपयोग पर सवाल उठाए, जबकि उन्हें स्पष्ट और ठोस रुख अपनाना चाहिए था।

पीएम मोदी ने कहा कि वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने पर भारत एक आत्मविश्वासी राष्ट्र के रूप में विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और तेज़ गति से आगे बढ़ रहा है। उन्होंने इसे ‘‘सदन का सौभाग्य’’ बताया कि आज इतिहास के इस महत्वपूर्ण मंत्र का स्मरण किया जा रहा है।

उनके भाषण के बाद सदन में व्यापक राजनीतिक बहस की पृष्ठभूमि तैयार हो गई है, जिसमें इतिहास, विचारधारा और वर्तमान राजनीति के कई स्तर शामिल हैं।


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