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बांग्लादेश में बढ़ती अराजकता: अंतरिम सरकार, कट्टरपंथ और ‘पाकिस्तान मॉडल’ की आशंका

ढाका। शेख हसीना सरकार के पतन के बाद नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस ने बांग्लादेश में शांति, स्थिरता और लोकतांत्रिक संक्रमण का वादा करते हुए अंतरिम सरकार का गठन किया था। लेकिन बीते डेढ़ सालों में हालात इसके उलट दिखाई दे रहे हैं। देश शायद ही किसी महीने हिंसा से अछूता रहा हो। हालिया घटनाओं ने यह सवाल और गहरा कर दिया है कि क्या बांग्लादेश सचमुच लोकतंत्र की ओर बढ़ रहा है या फिर सुनियोजित अस्थिरता के दलदल में फंसता जा रहा है।

छात्र नेता की हत्या और भड़की हिंसा

शेख हसीना सरकार के खिलाफ हुए हिंसक आंदोलन में सक्रिय रहे छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या के बाद हालात और बिगड़ गए हैं। राजधानी ढाका से लेकर चटगांव और राजशाही तक हिंसा की घटनाएं सामने आई हैं। भीड़ ने अखबारों के दफ्तरों को आग के हवाले किया, भारतीय राजनयिक परिसरों और अधिकारियों के आवासों पर हमले किए और अल्पसंख्यक समुदाय, खासकर हिंदुओं को निशाना बनाया गया।

एक बेहद वीभत्स घटना में ईशनिंदा के आरोप में एक हिंदू युवक की हत्या कर उसे पेड़ से बांधकर जला दिया गया। इन घटनाओं ने न सिर्फ बांग्लादेश की आंतरिक सुरक्षा पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर भी गंभीर चिंता पैदा कर दी है।

मीडिया और संस्थानों पर दबाव

विशेषज्ञों का कहना है कि अंतरिम सरकार कानून-व्यवस्था संभालने के बजाय उसे राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है। आरोप है कि पुलिस को विपक्षी अवामी लीग के कार्यकर्ताओं को बिना मुकदमे गिरफ्तार करने के निर्देश दिए गए हैं, जबकि अदालतों पर जमानत न देने का दबाव बनाया जा रहा है।

इसी क्रम में देश के दो प्रमुख अखबार—प्रथम आलो और डेली स्टार—पर हुए हमलों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरे की आशंका को और मजबूत किया है। जानकारों के अनुसार ये अखबार सरकार की नाकामियों और हिंसा की घटनाओं को उजागर कर रहे थे।

‘पाकिस्तान मॉडल’ की बहस

नवभारत टाइम्स से बातचीत में जियो-पॉलिटिकल एक्सपर्ट कमर आगा ने मौजूदा हालात की तुलना पाकिस्तान के राजनीतिक मॉडल से की। उनके अनुसार, अल्पसंख्यकों पर हमले, सेना का राजनीति में बढ़ता दखल और लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करना—ये सब वही संकेत हैं, जो पाकिस्तान में दशकों से देखे जाते रहे हैं।

कमर आगा का कहना है कि बांग्लादेश में अब भी सेक्युलर ताकतें मौजूद हैं, लेकिन शेख हसीना के जाने के बाद नेतृत्व का अभाव है। अवामी लीग के भीतर कोई ऐसा चेहरा नहीं उभर पाया है जो इस धड़े को एकजुट कर सके। इसके उलट, मोहम्मद यूनुस पर मुस्लिम लीग सरीखी विचारधारा अपनाने और कट्टर इस्लामी समूहों को खुली छूट देने के आरोप लग रहे हैं।

क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियों की भूमिका

विशेषज्ञों का मानना है कि बांग्लादेश की अस्थिरता केवल आंतरिक राजनीति तक सीमित नहीं है। पाकिस्तान के साथ बढ़ते राजनीतिक, कारोबारी और सैन्य संबंध, जमात-ए-इस्लामी जैसी विचारधाराओं का प्रभाव और सेना की भूमिका—ये सभी देश की दिशा को प्रभावित कर रहे हैं।

इसके अलावा, अमेरिका और चीन की रणनीतिक दिलचस्पियां भी चर्चा में हैं। अमेरिका बांग्लादेश को अपने इंडो-पैसिफिक फ्रेमवर्क से जोड़ना चाहता है, जबकि चीन भारत से जुड़े संवेदनशील इलाकों पर दबाव को अपने हित में देख सकता है। इन तमाम शक्तियों के टकराव ने हालात को और जटिल बना दिया है।

‘सिराजुद्दौला साम्राज्य’ का उन्माद

इसी बीच एक और चिंताजनक पहलू सामने आया है। सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में ‘ग्रेटर बांग्लादेश’ या तथाकथित ‘सिराजुद्दौला साम्राज्य’ की कल्पना दिखाई जा रही है, जिसमें भारत और म्यांमार के कई हिस्सों को शामिल करने की बात कही जा रही है। वीडियो में बिहार, झारखंड और ओडिशा तक पर कब्जे के ख्वाब दिखाए गए हैं।

नेशनल सिक्योरिटी एनालिस्ट्स का मानना है कि भले ही यह भारत में बैठे लोगों को अव्यावहारिक लगे, लेकिन बांग्लादेश के कट्टरपंथी तत्वों के बीच इस तरह का भ्रम तेजी से फैल रहा है, जिसे भारत-विरोधी नफरत के साथ जोड़ा जा रहा है।

आगे का रास्ता

कुल मिलाकर, बांग्लादेश इस वक्त एक बेहद नाजुक दौर से गुजर रहा है। अंतरिम सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती कानून-व्यवस्था बहाल करने, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और लोकतांत्रिक संस्थाओं में भरोसा लौटाने की है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो आशंका है कि देश लंबे समय तक अराजकता और अस्थिरता के चक्र में फंसा रह सकता है—जिसका असर पूरे दक्षिण एशिया पर पड़ेगा।

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